Natasha

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लेखनी कहानी -27-Jan-2023

स्वभाव कैसा हो


एक समय की बात है पैंठन नामक गांव मे कुछ दुष्टों ने घोषणा की कि जो भी एकनाथ महाराज को गुस्सा दिला देगा। उसे सौ रुपए का इनाम दिया जाएगा। एक ब्राह्मण नाैजवान ने यह बीड़ा उठाया। वह एकनाथ महाराज के घर पहुंचा, उस समय एकनाथ जी पूजा कर रहे थे। वह सीधे पूजा घर में जाकर उनकी गोद में जा बैठा, उसने सोचा कि इस तरह अशुद्ध हो जाने पर एकनाथजी को गुस्सा जरूर आएगा, लेकिन उसकी सोच के विपरीत एकनाथ महाराज ने नौजवान से हंसकर कहा– भैया। तुम्हें देखकर मुझे बड़ा आनंद हुआ।

मिलते तो बहुत से लोग हैं पर तुम्हारा प्रेम तो विलक्षण है। वह देखता ही रह गया। समझ गया कि इन्हें क्रोध दिलाना बहुत मुश्किल है। मगर दो सौ रुपए के लालच मे उसने हिम्मत नहीं हारी और अगले दिन फिर कोशिश की। वह भोजन के समय एकनाथजी के घर पहुंचा। एकनाथजी ने नौजवान का आसन अपने पास ही लगवाया। भोजन परोसा गया। घी परोसने के लिए एकनाथजी की पत्नी गिरजाबाई आई।

उन्होंने जैसे ही ब्राह्मण की दाल में झुककर घी डालना चाहा तभी वह लपक कर उनकी पीठ पर चढ़ गया। एकनाथजी ने अपनी पत्नी से कहा देखना कहीं ब्राह्मण गिर न पड़े। उनकी पत्नी ने गिरिजाबाई ने मुस्कुराते हुए कहा- मुझे बेटे को पीठ पर लादकर काम करने की आदत है। इस बच्चे को मैं कैसे गिरने दूंगी। इस बात से तो ब्राह्मण युवक को ग्लानि होने लगी। उसने उसी समय उन दोनों से अपनी गलती की माफी मांग कर जीवन में कभी इस तरह के कामों को न करने का प्रण लिया।

सीख - गुस्सा न करने पर कुछ समय में दुख पहुंचाने वाले को अपने आप अपनी गलती का एहसास हो जाता है।

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